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लेखनी कहानी -11-Sep-2022 सौतेला

भाग 22 


सुमन और राजेश की प्रेम कहानी सब को पता चल चुकी थी इसलिए अब सुमन के विवाह की चर्चा चलने लगी थी । राजेश के पिता एक सरकारी विद्यालय में प्रधानाचार्य थे । सुमन के पिता और दौलत दोनों ने ही राजेश के पिता से संपर्क किया और सुमन का विवाह राजेश के साथ करने की अपनी मंशा व्यक्त कर दी । राजेश के पिता कुंदन बहुत समझदार व्यक्ति थे । उन्होंने सुमन के परिवार के बारे में जब समस्त जानकारी हासिल कर ली तो उन्हें यह रिश्ता पसंद आ गया । राजेश की रजामंदी तो पहले से थी ही इसलिए अब इस रिश्ते में कोई बाधा नजर नहीं आ रही थी । 

एक दिन राजेश की मां ने कुंदन से कहा "आप इतने बड़े व्यक्ति हैं । इतना तजुर्बा हो गया है आपका ।  एक विद्यालय के प्रधानाचार्य भी हैं । आपको यह पता होना चाहिए कि हमारा राजेश बड़ा बेटा नहीं है । राजेश से बड़ी उसकी बहिन दीपा है । दीपा का विवाह करने से पहले हम राजेश का विवाह कैसे कर सकते हैं ? यह बात आपके दिमाग में क्यों नहीं आई ? लोग तो लड़की छोटी होने पर भी पहले उसका विवाह कर देते हैं मगर यहां तो दीपा राजेश से बड़ी है फिर भी आप उस तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं । ये कहां की बुद्धिमानी है" ? 

कुंदन को अपनी गलती का अहसास हो गया । राजेश का विवाह अभी नहीं हो सकता है , यह संदेश सुमन के घरवालों को दे दिया गया था । सुमन के घरवाले बड़ी दुविधा में पड़ गए । सुमन 25 वर्ष से अधिक की हो गई थी । और कब तक उसे कुंवारी रखेंगे ? नई मां की चिंता वाजिब थी । मजबूरी यह भी थी कि और किसी लड़के से सुमन की शादी  कर नहीं सकते थे । बड़ा गजब का धर्मसंकट फंस गया था । न निगलते बन रहा था और न उगलते । 

आखिर बीच का रास्ता निकाला गया । राजेश और सुमन की शादी तो दीपा की शादी के बाद करने के लिए सब तैयार हो गए थे मगर नई मां की इच्छा थी कि सुमन और राजेश की मंगनी हो जाए तो चिंता समाप्त हो जाए । इस बात पर कुंदन और उसकी पत्नी भी राजी हो गए । सुमन और राजेश की सगाई धूमधाम से हो गई । अब सुमन और राजेश प्रेमी प्रेमिका से दो कदम आगे "मंगेतर" हो गए थे । दोनों के घरवालों ने उन्हें मिलने की अनुमति भी दे दी थी । राजेश ऑफिस से सीधा सुमन के घर आता और फिर दोनों कहीं घूमने चले जाते । सुमन ने राजेश को छूने और चूमने की इजाजत दे दी थी । राजेश इतने में ही खुश था । ज्यादा के लिए तो पूरा जीवन पड़ा था । 

खुशियों का शायद नई मां के साथ कुछ झगड़ा सा था । जैसे ही थोड़ी बहुत खुशियां आने लगती , कोई न कोई ऐसी घटना घट जाती कि दुखों का पहाड़ टूट पड़ता था नई मां पर । जब वह इस घर में ब्याहता होकर आई तब उसे दो बच्चे संपत और अनीता पति के द्वारा उपहार में मिले थे । उस पर सौतेली मां का तमगा चस्पा हो गया था । उसने संपत और अनीता को अपने सगे बेटे से भी बढकर प्यार दिया लेकिन लोग तो कहने से बाज नहीं आते हैं ना ! संपत और नई मां के बीच संदेह की खाई पैदा कर ही दी थी लोगों ने । इस खाई की बदौलत संपत एक तरह से अलग सा ही हो गया था परिवार से । नई मां के अपने दो बच्चे दौलत और सुमन हुए । वह अनीता, दौलत और सुमन में ही मगन रहने लगी । 

जब अच्छे दिन आए तो संपत की शादी गायत्री से हो गई । गायत्री ने संपत के मन में जमी संदेह की धूल मन लगाकर साफ की तो संपत पुनः अपने परिवार से जुड़ गया । इससे सबसे अधिक खुशी नई मां को ही हुई । उसके जीवन में इतनी खुशियां शायद पहली बार आई थीं । वह फूली फूली घूमा करती थी । संपत और गायत्री उसका बहुत मान सम्मान करते थे । फिर एक दिन उसके परिवार में पोते के रूप में शिवम आ गया । खुशी के मारे नई मां ने तब "सवामणी" की थी और पूरे गांव को जिमाया था । 

लेकिन नई मां की खुशियों को किसी की नजर लग गई और एक दिन डाकू मोहर सिंह ने गायत्री की हत्या कर दी । खुशहाल परिवार बिखर गया । बस तब से ही नई मां का दिल कतरा कतरा कर के टूटने लगा था । 

गायत्री की मौत का सदमा अभी भरा नहीं था कि संपत की दूसरी पत्नी कामिनी ने अपने आचरण और व्यवहार से संपत को उन लोगों से दूर कर दिया था । इस धक्के से वह अभी उबरी भी नहीं थी कि एक दिन एक दुर्घटना में अनीता की मृत्यु हो गई । इस घटना से नई मां अब टूट गई थी । अनीता की असामयिक मौत ने उसे बीमार कर दिया था । शिवम और नेहा के बचपन के सहारे वह इस धक्के को भी झेल गई थी । इसके पश्चात दौलत के बेटे आर्यन के आ जाने से वह एक बार फिर से जीने लगी थी और सुमन तथा राजेश का प्यार देखकर वह मन ही मन ईश्वर को उसकी असीमित कृपा के लिए धन्यवाद देती रहती थी । 

उधर दीपा की शादी हो गई थी इसलिए अब सुमन और राजेश के विवाह में कोई अड़चन नहीं थी । दोनों परिवार के लोग विवाह को तैयार थे । शादी का मुहूर्त निकल गया था । 

सुमन शंकर भगवान की भक्त थी । वह सीधे शिव जी से बातें करती थी । वह शादी से पहले एक बार "महाकाल" के दर्शन करना चाहती थी । उसने अपनी ख्वाहिश राजेश को बताई तो राजेश ने कहा "हनीमून उज्जैन में मना लेंगे । वहां पर खूब रहना और महाकाल के खूब दर्शन करना" । पर सुमन को तो विवाह से पूर्व दर्शन करने थे महाकाल के इसलिए उसने विवाह से पूर्व उज्जैन चलने का आग्रह किया । राजेश अपने घरवालों से पूछकर इस यात्रा के लिए तैयार हो गया । 

सुमन इस यात्रा से बहुत उत्साहित थी । उसकी गृहस्थी बसने जा रही थी । वह भोलेनाथ से आशीर्वाद लेने जा रही थी अपने पति के साथ । पति या मंगेतर ? सुमन के लिए दोनों में कोई अंतर नहीं था । वह कहती थी कि जो एक बार दिल में बस गया , वही उसका पति है । शादी होना या नहीं होना कोई मायने नहीं रखता है । तो एक तरह से सुमन और राजेश दोनों पति पत्नी की तरह से महाकाल के दर्शन करने ट्रेन से चल दिए । 

कुदरत का करिश्मा भी अजीब होता है । सुमन 28 साल की थी तब और राजेश 30 का । दोनों मजे से ट्रेन में सफर कर रहे थे । सुमन की गोदी में राजेश का सिर था । वह बड़े प्रेम से उसका सिर सहला रही थी । अचानक राजेश दर्द से कराह उठा । उसके सीने में अचानक जोर से दर्द उठा । वह दर्द के मारे दुहरा हो गया । कंपार्टमेंट में हाहाकार मच गया । सुमन राजेश की ऐसी स्थिति देखकर घबरा गई । ट्रेन धड़धड़ती दौड़ रही थी और राजेश की सांस भी उतनी ही तेज गति से गति से दौड़ रही थी । पर सांसें अधिक दूर तक दौड़ नहीं पाई और राजेश ने ट्रेन में ही दम तोड़ दिया । सुमन की दुनिया बसने से पहले ही उजड़ गई । 

श्री हरि 
22.5.23 

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1 Comments

Varsha_Upadhyay

24-May-2023 07:51 PM

मार्मिक चित्रण

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